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कोई भी कानून बनाना और उसे खत्म करना संसद का काम- सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। महिलाओं को उत्पीडऩ से बचाने वाला कानून कई बार पुरुषों के उत्पीडऩ की वजह बन जाता है। इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसे कोर्ट ने दो मिनट में ही खारिज कर दिया। इस अर्जी में दहेज उत्पीडऩ कानून के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए थे। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी चंद्रन की युगलपीठ ने कहा कि आप इस मामले में संसद के पास जाएं। कोई भी कानून बनाना और उसे खत्म करना संसद का काम है। इस याचिका को दाखिल करने वाले रूपसी सिंह ने कहा कि एक्ट के सेक्शन 2,3 और 4 को खत्म करना चाहिए। इस ऐक्ट का सेक्शन 2 दहेज की परिभाषा बताता है।

सेक्शन 3 कैसे दहेज लेने और देने के मामलों में सजा दी जा सकती है और यह क्या हो सकती है। वहीं सेक्शन 4 में दहेज की मांग पर सजा की बात कही गई है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस कानून के कुछ प्रावधान अवैध हैं और उन्हें खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह जनता की भावना है, जिसे उठाते हुए मैंने अर्जी दाखिल की है। कोर्ट इन दलीलों से सहमत नहीं हुई और 2 मिनट में अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि याचिका डिसमिस है। आप संसद से यह बात करें। बता दें बेंगलुरु में रहने वाले इंजीनियर अतुल सुभाष ने घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीडऩ के मुकदमे से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने अपनी खुदकुशी से पहले एक वीडियो शेयर किया था, जिसमें उन्होंने दहेज उत्पीडऩ कानून पर सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि आखिर मेरी इतनी सैलरी है तो मैं क्यों दहेज लूंगा। इसके अलावा भी कई ऐसे मामले हैं, जिन्हें लेकर सवाल उठाए गए हैं।

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