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फसल अवेशष को जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए कृषि विभाग ने किया टीमों का गठन

चण्डीगढ – हरियाणा के सभी जिलों में फसल अवशेष को जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए कृषि विभाग ने गांव, खंड व जिला स्तर पर टीमों का गठन किया है। इसके अलावा हरसेक द्वारा सेटेलाईट के फसल अवशेष में आगजनी पर नजर रखी जा रही है। इससे फसल अवशेष में आग लगाने वाले का तुरंत पता चल जाएगा, और जीपीएस लोकेशन किसान के पास भेजी जाएगी। फसल अवशेष में आग लगाने वाले के खिलाफ नियमानुसार सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के मद्देनजर दंड प्रक्रिया नियमावली 1973 की धारा 144 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत आदेश पारित कर जिलों में तुरंत प्रभाव से रबी फसल की कटाई के बाद बचे अवशेष/भूसे को जलाने पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाने के आदेश जारी किए हैं। येे आदेश आगामी 25 जून, 2024 तक लागू किए गए हैं। कृषि, राजस्व और पंचायत विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे किसानों को फसल अवशेष नहीं जलाने के बारे में जागरूक करें।

उन्होंने कहा कि जारी आदेशानुसार कृषि विभाग ने फसल अवशेषों में आग लगाने की घटनाओं को रोकने के लिए टीमों का गठन किया गया है। इसके साथ ही किसानों से अपील की गई है कि वे गेहूं के फसल अवशेषों में आग न लगाकर कृषि यंत्रों की सहायता से फसल अवशेषों का प्रबन्धन करें, ताकि आगजनी से होने वाले नुकसान से बचा जा सके। इसके साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सके तभी हमारा पर्यावरण स्वच्छ रह सकता है।

प्रवक्ता ने बताया कि गेहूं फसल की कटाई के बाद बचे हुई अवशेष/भूसे को जलाने से उत्पन्न धुआं आसमान में चारों ओर फैल जाता है, जो आमजन के स्वास्थ्य के लिए घातक है। फसल अवशेषों में आगजनी होने पर मानव जीवन तथा संपत्ति को होने वाली हानि की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। फसल की कटाई के बाद बचे अवशेषों को जलाने से पशुओं के चारे की कमी होने की संभावना रहती है। वहीं दूसरी ओर भूसे/फसल के अवशेष को जलाने से भूमि के मित्र कीट मर जाते हैं, जबकि उनका जिंदा रहना जरूरी है। मित्रकीटों के मर जाने से भूमि की उर्वरक शक्ति कम होने से फसल की पैदावार पर भी प्रभाव पड़ता है।

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